पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/९२

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इम कदापि नहीं चाहते कि कोई महाशय अकेले "ब्राह्मय" का भार अपने माथे ले लें, पर केवल हमारे ही माथे रहना भी असह्य है। यदि कोई भी सचमुच कटी अगुली पर मूतने वाला होता तो हम क्यों झीखते । परमेश्वर रावसाहब का मला फरें, जिन्हों ने हमें इस महाविपत्ति में सहारा दिया। हम ऋपि नहीं हैं कि अपनी स्तुति से प्रसन्नान हो, इमः ऐसे बौडम, उजडु, असभ्य नहीं हैं कि अपने दयालुओं को धन्यवाद-आशीर्वाद न दें। हमारा उत्साह बढ़ता है, और चित्त को चाव होता है कि हमारे गुणग्राहक भी हैं; और- साधारण लोग नहीं घडे २ सत्पुरुष हम पर अनुग्रह हैं ! बहुत थोडे से, पर बडे बडे लोग हमें नीचा दिखाने की फिक में भी रहते हैं। हम पर साह भी करते हैं ! पर हमारे हृदयविहारी की दया से आजतक कुछ कर नहीं सके ! यद्यपि हमको देव ने इतनी सामर्थ्य नहीं दी कि हम अपने मनोर्थ को ठीक २ पा सके, पर इस दीनहीन दशा में हम कुछ हैं, इसका कारण जहा तक सोचते हैं यही पाते हैं कि प्रेम के दो अक्षर! और कुछ नहीं अहह!

पया क्या फर्क मैं शुक्र खुदाए कदीर का,
यखशा है मुझ फ़कीर को स्तया अमीर का!

धन्य, प्रभो!! प्रेम देव ॥
 


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