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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/९५

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द्वितीय परिच्छेद।

सामयिक लेख।

स्वतंत्र।

हमारे बाबू साहब ने बरसों स्कूल की खाक छानी है, बीसियों मास्टरों का दिमाग चाट डाला है, विलायतभर के ग्रन्थ चरे बैठे है, पर आज तक हिस्ट्री, जियोग्रफी आदि रटाने में विद्या-विभाग के अधिकारीगण जितना समय नष्ट कराने हैं, उसका शताश भी स्वास्थ्य रक्षा और सदाचार शिक्षा में लगाया जाता हो तो बतलाइए! यही कारण है कि जितने बी॰ ए॰, एम॰ ए॰, देखने में आते हैं उनका शरीर प्राय ऐसा ही होता है कि आधी आवै तो उड जाय। इसी कारण उनके बडे २ खयालात या तो देश पर कुछ प्रभाव ही नहीं डालने पाते या उलटा असर दिखाते हैं। क्योंकि तन और मन का इतना दृढ सम्बध है कि एक बेकाम हो तो दूसरा भी पूरा काम नहीं दे सकता, और यहां देह के निरोग रखनेवाले नियमों पर आरभ से आज तक कभी ध्यान ही नहीं पहुंचा। फिर काया के निकम्मेपन में क्या सन्देह है, और ऐसी दशा में दिल और दिमाग निर्दोष न हों तो आश्चर्य क्या है! ऊपर से आपको अपने देश के जल-वायु के अनुकुल आहार-

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