सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६४ )

और उनसे घृण किया करते हैं उनसे तुम लाखो कोस दूर थे। सानों लोगों का रक रहेगा, सहस्रो ललमानों का अहिवात जाता रहेगा, इस भय से अपने तई प्रसन्नतापूर्वक दूसरों के हाथ में सौंप दिया। यह गुण तुम्हारा हमारे हृदय को प्रफुल्लित करता है। गुण-ग्राहकता, आश्रित पोषकता और दुःख-सुख दोनों में एकरसता आदि के कारण तुम प्रेम समाज के प्रातस्मरणीय हो। सितम्बर फी २१ तारीख तुम्हारे वियोग का दिन है, अतः सहदयों को दुमदाई होगी। कहां तक लिने, शोफ के मारे तो अधिक विषय सूझते ही नहीं। इस दशा में भी सहस्रों के पेट तुम्हारे अनुग्रह से पलते थे, हाय आज उनके चिरा की क्या दशा होगी!!