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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/९८

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बाधा देखकर कौन न कहेगा कि काले रंग के गोरे मिजाज वाले साहब अपने निर्वाहोपयोगी कर्तव्य में भी स्वतत्र नहीं है।

अब घर की दशा देखिए तो यदि कोऊ नौरवडा बूढा हुवा, और इनका दयैल न हुवा तो तो जीभ से चिट्ठी का लिफाफा चाटने तक की खतत्रता नही । याहर भले ही जाति, कुजाति, अजाति के साथ मच्छ, कुमच्छ, अभच्छ भच्छन कर आवे पर देहली पर पाव धरते ही हिन्दू प्राचार का नाट्य न करें तो किसी काम के न रववे जायें। बहुत नहीं तो वाफ्य-बाणों ही से छेदके छलनी कर दिए जाय। हयादार को इतना भी घोडा नहीं है। हा यदि 'एक लजाम्परित्यक्ष त्रैलोक्य विजयी भवेत्' का सिद्धान्त रखते हों, औरयाने भर को कमा भी लेते हा वा घर के फरता धरता आपही हों तो इतना कर सकते है कि धयुआइन कोई सुशिक्षा दें तो उनको डांट लें, पर यह मजाल नहीं है कि उन्हें अपनी राह पर ला सकें, क्योकि परमेश्वर की दया से अभी भारत की कुलांगनाओं पर कलि युग का पूरा प्रभाय नहीं हुवा । इससे उनमें सनातनधम, सत्कर्म, कुलाचार, सुव्यवहार का निरा प्रभाव भी नहीं है।

आप-सरप भले ही तीर्थ, व्रत, देव, पितर आदि को कुन ममझिए पर चे नगे पाव माघ मास में कोसों की थकावट उठाकर गंगा-यमुनादि फा स्नान अवश्य करेंगी, हरतालिका के दिन चाहे बरसों की रोगिणी क्यों न हो, पर अन्न फी कणिका वा जल की वृंद कभी गमनोमी, जन्माष्टमी, पितृविसर्जनी श्रादि माने पर, जैसे हो, थोडा बहुत धर्मोत्सव अवश्य करेंगी। सच पूछो तो, मार्णव की स्थिरता में घदी अनेकाश श्रद्धा दिखाती हैं, नहीं