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पृष्ठ:निर्मला.djvu/१०२

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आठवां परिच्छेद

जब कोई बात हमारी आशा के विरुद्ध होती है, तभी दुख होता है। मन्साराम को निर्मला से कभी इस बात की आशा न थी कि वह उसकी शिकायत करेगी। इसीलिए उसे घोर वेदना हो रही थी। यह क्यों मेरी शिकायत करती हैं? क्या चाहती हैं? यही न कि यह मेरे पति की कमाई खाता है, इसके पढ़ाने-लिखाने में रुपये ख़र्च होते हैं, कपड़े पहनता है। उनकी यही इच्छा होगी कि यह घर में न रहे। मेरे न रहने से उनके रुपये बच जाएँगे। वह मुझसे बहुत प्रसन्नचित्त रहती हैं। कभी मैंने उनके मुँह से कटु शब्द नहीं सुने। क्या यह सब कौशल है? हो सकता है! चिड़िया को जाल में फँसाने के पहले शिकारी दाने बिखेरता है। आह! मैं नहीं जानता था कि दाने के नीचे जाल है, यह मातृ-स्नेह केवल मेरे निर्वासन की भूमिका है।

अच्छा, मेरा यहाँ रहना इन्हें क्यों बुरा लगता है? जो उनका पति है, क्या वह मेरा पिता नहीं है? क्या पिता-पुत्र का सम्बन्ध