पृष्ठ:निर्मला.djvu/१२

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पहला परिच्छेद
 

आखिर नाव चकर खाने लगती है; मालूम होता है-अब डूबी, अब डूवी । तब वह किसी अदृश्य सहारे के लिए दोनों हाथ फैलाती है, नाव नीचे से खिसक जाती है। और उसके पैर उखड़ जाते हैं। वह जोर से चिल्लाई और चिल्लाते ही उसकी आँखें खुल गई। देखा तो माता सामने खड़ी उसका कन्धा पकड़ कर हिला रही थीं।