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निर्मला
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उसकी सारी जिम्मेदारी मन्साराम ही के सिर डालना चाहते थे। यह अध्यक्ष के सामने की बात थी, यह इस बात की साक्षी दे सकते थे कि मन्साराम अपनी जिद्द से अस्पताल जा रहा है। मुन्शी जी का इसमें लेशमात्र भी दोष नहीं है।

मन्साराम ने भल्ला कर कहा-नहीं, नहीं, नहीं, सौ बार नहीं । मैं घर नहीं जाऊँगा। मुझे अस्पताल ले चलिए और घर के सब आदमियों को मना कर दीजिए कि मुझे देखने न आवें। मुझे कुछ नहीं हुआ है, विलकुल वीमार नहीं हूँ। आप सुझे छोड़ दीजिए, मैं अपने पाँव से चल सकता हूँ।

वह उठ खड़ा हुआ और उन्मत्त की भाँति द्वार की ओर चला; लेकिन पैर लड़खड़ा गए। यदि मुन्शी जी ने सँभाल न लिया होता, तो उसे बड़ी चोट आती। दोनों नौकरों की मदद से मुन्शी जी उसे बग्घी के पास लाए और अन्दर विठा दिया।

गाड़ी अस्पताल की ओर चली। वही हुआ जो मुन्शी जी. चाहते थे। इस शोक में भी उनका चित्त सन्तुष्ट था। लड़का अपनी इच्छा से अस्पताल जा रहा था,क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं था कि घर से इसे कोई स्नेह नहीं है? क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि मन्साराम निर्दोष है? वह उस पर अकारण ही भ्रम कर रहे थे।

लेकिन जरा ही देर में इस तुष्टि की जगह उनके मन में ग्लानि का भाव जाग्रत हुआ। वह अपने प्राण-प्रिय पुत्र को घर न ले जाकर अस्पताल लिये जा रहे थे। उनके विशाल भवन में उनके