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पृष्ठ:निर्मला.djvu/१९९

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निर्मला
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भो याद करें,रुला-रुला कर छोडूँ मगर सहम करके रह जाती थी। बारात जनवासे चली गई थी। भोजन की तैयारी हो रही थी। निर्मला भोजन के थाल चुनने में व्यस्त थी, सहसा महरी ने आकर कहा-बिट्टी, तुम्हें सुधा रानी बुला रही हैं। तुम्हारे कमरे में बैठी हैं।

निर्मला ने थाल छोड़ दिए और घबराई हुई सुधा के पास आई, मगर अन्दर कदम रखते ही ठिठक गई-डॉक्टर सिन्हा खड़े थे।

सुधा ने मुस्करा कर कहा-लो बहिन,बुला दिया। अब जितना चाहो,फटकारो। मैं दरवाजा रोके खड़ी हूँ,भाग नहीं सकते।

डॉक्टर साहब ने गम्भीर भाव से कहा-भागता कौन है यहाँ तो सिर झुकाए खड़ा हूँ।

निर्मला ने हाथ जोड़ कर कहा-इसी तरह सदा कृपा-दृष्टि रखिएगा,भूल न जाइएगा! यही मेरी विनय है!!