पृष्ठ:निर्मला.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
 

सत्रहवाँ परिच्छेद

कृष्णा के विवाह के बाद सुधा चली गई; लेकिन निर्मला मैके ही में रह गई। वकील साहब बार-बार लिखते थे; पर वह न जाती थी। वहाँ जाने को उसका जी ही न चाहता था। वहाँ कोई ऐसी चीज़ न थी, जो उसे खींच ले जाय। यहाँ माता की सेवा और छोटे भाइयों की देख-भाल में उसका समय बड़े आनन्द से कट जाता था। वकील साहब ख़ुद आते, तो शायद वह जाने पर राज़ी हो जाती; लेकिन इस विवाह में मुहल्ले की कई स्त्रियों ने उनकी वह दुर्गति की थी कि बेचारे आने का नाम ही न लेते थे। सुधा ने भी कई बार पत्र लिखा; पर निर्मला ने उससे भी हीले-हवाले किए। आख़िर एक दिन सुधा ने नौकर को साथ लिया; और स्वयं आ धमकी!

जब दोनों गले मिल चुकीं, तो सुधा ने कहा—तुम्हें तो वहाँ जाते मानो डर लगता है।