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अठारहवाँ परिच्छेद
 

पढ़ाने वाले मास्टर को भी जवाब दे दिया गया। जियाराम को यह कतर-ज्योंत धुरी लगती थी। जव निर्मला मैके चली गई, तो मुन्शी जी ने दूध भी बन्द कर दिया। नवजात कन्या की चिन्ता अभी से उनके सिर सवार हो गई थी!

जियाराम ने बिगड़ कर कहा-दूध बन्द करने से तो आपका महल वन रहा होगा, भोजन भी बन्द कर दीजिए!

मुन्शी जी-दूध पीने का शौक है, तो जाकर दुहा क्यों नहीं लाते। पानी के पैसे तो मुझसे न दिए जायँगे!

जियाराम-मैं दूध दुहाने जाऊँ, कोई स्कूल का लड़का देख ले तव ?

मुन्शी जी-तब कुछ नहीं, कह देना अपने लिए दूध लिए जाता हूँ। दूध लाना कोई चोरी नहीं है।

जियाराम-चोरी नहीं है! आप ही को कोई दूध लाते देख ले, तो आपको शर्म न आएगी?

मुन्शी जी-बिलकुल नहीं! मैं ने तो इन्हीं हाथों से पानी खींचा है, अनाज की गठरियाँ लाया हूँ। मेरे बाप लखपती नहीं थे।

जियाराम-मेरे बाप तो गरीब नहीं हैं, मैं क्यों दूध दुहाने जाऊँ? आखिर आपने कहारों को क्यों जवाब दे दिया?

मुन्शी जी- क्या तुम्हें इतना भी नहीं सूझता कि मेरी आमदनी अव पहली सी नहीं रही, इतने नादान तो नहीं हो।

जियाराम-आखिर आपकी आमदनी क्यों कम हो गई?

मुन्शी जी-जब तुम्हें अक्ल ही नहीं है,तो क्या समझाऊँ?