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निर्मला
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यहाँ जिन्दगी से तङ्ग आ गया हूँ, मुकदमे कौन ले; और ले भी तो तैयार कौन करे? वह दिल ही नहीं रहा। अब तो जिन्दगी के दिन पूरे कर रहा हूँ। सारे अर्मान लल्लू के साथ चले गए!

जियाराम-अपने ही हाथों न?

मुन्शी जी ने चीख कर कहा-अरे अहमक! यह ईश्वर की मर्जी थी! अपने हाथों कोई अपना गला काटता है।

जियाराम-ईश्वर तो आपका विवाह करने न आया था।

मुन्शी जी अब जब्त न कर सके; लाल-लाल आँखें निकाल कर बोले-क्या तुम आज लड़ने के लिए कमर बाँध कर आए हो? आखिर किस बिरते पर? मेरी रोटियाँ तो नहीं चलाते। जब इस क़ाबिल हो जाना, तो मुझे उपदेश देना। तब मैं सुन लूँगा। अभी तुमको मुझे उपदेश देने का अधिकार नहीं है। कुछ दिनों अदव और तमीज सीखो। तुम मेरे सलाहकार नहीं हो कि मैं जो काम करूँ, उसमें तुमसे सलाह लूँ। मेरी पैदा की हुई दौलत है, उसे जैसे चाहूँ खर्च कर सकता हूँ। तुमको जबान खोलने का भी हक नहीं है। अगर फिर तुमने मुझसे ऐसी बेअदबी की, तो नतीजा बुरा होगा। जब मन्साराम जैसा रत्न खोकर मेरे प्राण न निकले, तो तुम्हारे बगैर मैं मर न जाऊँगा; समझ गए!

यह कड़ी फटकार पाकर भी जियाराम वहाँ से न टला। निःशत भाव से बोला- तो क्या आप चाहते हैं कि हमें चाहे कितनी ही तकलीफ हो, मुँह न खोलें! मुझसे तो यह न होगा।