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वीसवाँ परिच्छेद
 

न पड़ती थी। दोनों आदमियों में क्या बातें हो रही हैं, यह जानने के लिए वह छटपटा रहा था।ज्योही थानेदार चला गया; और भुङ्गी किसी काम से बाहर निकली,जियाराम ने पूछा-थानेदार क्या कह रहा था; भुङ्गी?

भुङ्गी ने पास आकर कहा-डाढ़ीजार कहता था, घर ही के किसी आदमी का काम है;वाहर का कोई नहीं है।

जियाराम-दादा जी ने कुछ नहीं कहा?

भुङ्गी-कुछ तो नहीं कहा,खड़े हूँ-हूँ' करते रहे। घर में एक भुङ्गी ही गैर है न; और तो सब अपने ही है।

जियाराम-मैं भी तो गैर हूँ,तू ही क्यों!

भुङ्गी-तुम गैर काहे को हो भैया?

जियाराम-बाबू जी ने थानेदार से कहा नहीं, घर में किसी पर उनका शुबहा नहीं है?

भुङ्गी--कुछ तो कहते नहीं सुना। बेचारे थानेदार ने भले ही कहा-भुङ्गी तो पागल है, वह क्या चोरी करेगी। बाबू जी तो मुझे फंसाए ही देते थे।

जियाराम-तब तो तू भी निकल गई। अकेला मैं ही रह गया। तू ही बता,तूने मुझे उस दिन घर में देखा था?

भुङ्गी-नहीं भैया,तुम तो ठेठर देखने गए थे।

जिया०-गवाही देगी न? भुङ्गी-यह क्या कहते हो भैया। बहू जी तपतीस बन्द करा देंगी।