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पृष्ठ:निर्मला.djvu/२३९

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निर्मला
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आज से थानेदारी करना छोड़ दूँ। आप के घर में कोई मुलाजिम तो ऐसा नहीं है,जिस पर आप को शुबहा हो?

मुन्शी जी-घर में तो आजकल सिर्फ एक महरी है।

थानेदार-अजी वह पगली है। यह किसी बड़े शातिर का काम है, खुदा की क़सम।

मुन्शी जी-तो घर में और कौन है? मेरे दोनों लड़के हैं स्त्री है; और बहन है। इनमें से किस पर शक करूँ।

थानेदार-खुदा की क़सम घर ही के किसी आदमी का काम है, चाहे वह कोई हो। इन्शाअल्लाह दो-चार दिन में मैं आप को इसकी खबर दूंगा। यह तो नहीं कह सकता कि माल भी सब मिल जायगा; पर खुदा की क़सम चोर को जरूर पकड़ दिखाऊँगा।

थानेदार चला गया,तो मुन्शी जी ने आकर निर्मला से उसकी बातें कहीं। निर्मला सहम उठी। बोली-आप थानेदार से कह दीजिए तफतीश न करे,आपके पैरों पड़ती हूँ।

मुन्शी जी-आखिर क्यों?

निर्मला-अब क्यों बताऊँ? वह कह रहा है कि घर ही के किसी आदमी का काम है।

मुन्शी जी-उसे बतने दो।

जियाराम अपने कमरे में बैठा हुआ भगवान् को याद कर रहा था। उसके मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। सुन चुका था कि पुलिस वाले चेहरे से भाँप जाते हैं। बाहर निकलने की हिम्मत