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बाईसवाँ
परिच्छेद
निर्मला न बिगड़ कर पूछा-इतनी देर कहाँ लगाई?
सियाराम ने ढिठाई से कहा-रास्ते में एक जगह सो गया था।
निर्मला-यह तो मैं नहीं कहती;पर जानते हो कै बज गए हैं? दस कभी के बज गए। बाजार कुछ दूर भी तो नहीं है।
सिया०-कुछ दूर नहीं। दरवाजे ही पर तो है।
निर्मला-सीधे से क्यों नहीं बोलते? ऐसा बिगड़ रहे हो जैसे मेरा ही कोई काम करने गए हो।
सिया०-तो आप व्यर्थ की बकवाद क्यों करती हैं? लिया हुआ सौदा लौटाना क्या आसान काम है। बनिये से घण्टों हुज्जत करनी पड़ी। वह तो कहो एक बाबा जी ने कह-सुन कर फेरवा दिया; नहीं तो किसी तरह न फेरता। रास्ते में एक मिनिट भी कहीं नहीं रुका,सीधा चला आता हूँ।