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२९ तीसरा परिच्छेद

रुलाने के लिए काफी है। उसे देख कर तो जख्म और भी हरा हो जायगा । उस दशा में न जाने क्या कर । इसे गुण समझिए चाहे दोष कि जिससे एक बार मेरी घनिष्टता हो गई, फिर उसकी याद चित्त से नहीं उतरती । अभी तो खैर इतना ही है कि उनकी सूरत आँखों के सामने नाचती रहती है। लेकिन वह कन्या घर में आ गई, तब तो मेरा जिन्दा रहना कठिन हो जायगा । सच मानिए, रोते-रोते मेरी आँखें फूट जायँगी । जानता हूँ, रोना-धोना व्यर्थ है । जो मर गया, वह लौट कर नहीं आ सकता । सन्न करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं है, लेकिन दिल से मजबूर हूँ। उस अनाथ बालिका को देख कर मेरा कलेजा फट जायेगा

मोटे-ऐसा न कहिए सरकार ! वकील साहब नहीं हैं तो क्या, आप तो हैं । अव आप ही उसके पिता तुल्य हैं। वह अब वकील साहब की कन्या नहीं, आपकी कन्या है । आपके हृदय के भाव तो कोई जानता नहीं; लोग समझेगे वकील - साहब के देहान्त हो जाने के कारण आप अपने वचन से फिर गए । इसमें आपकी बदनामी है । चित्त को समझाइए, और हँसी-खुशी कन्या का पाणिग्रहण करा लीजिए। हाथी मरे भी तो नौ लाख का। लाख विपत्ति पड़ी है। लेकिन मालकिन आप लोगों की सेवा-सत्कार करने में कोई बात उठा न रक्खेंगी।

बावू साहब समझ गए कि पण्डित मोटेराम कोरे पोथी के ही पण्डित नहीं वरन् व्यवहार-नीति में भी चतुर हैं। बोले-पण्डितजी,