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पृष्ठ:निर्मला.djvu/४३

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निर्मला
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आने तो आएगा। बड़े विचित्र जीव हैं। न जाने इनके यहाँ कैसे नौकर टिकते हैं।

कहार--मुझे जोड़ के आज तक तो दूसरा टिका नहीं; और न टिकेगा। साल भर से तलब नहीं मिली। किसी की तलब नहीं देते। जहाँ किसी ने तलब माँगी; और लगे उसे डाटने। बेचारा नौकरी छोड़ कर भाग जाता है। वह दोनों आदमी जो पङ्खा झल रहे थे, सरकारी नौकर हैं। सरकार से दो अर्दली मिले हैं न। इसी से पड़े हुए हैं। मैं भी सोचता हूँ जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी; दस साल कट नए हैं, साल-दो साल और इसी तरह कट जायँगे।

मोटेराम--तो तुम्हीं अकेले हो! नाम तो कई कहारों का लेते हैं।

कहार--वह सब इन दो-तीन महीनो के अन्दर आए और छोड़-छोड़ चले गए। यह अपना रोब जमाने को अभी तक उनका नाम जपा करते हैं। कहीं नौकरी दिलाइएगा, चलूँ?

मोटेराम--अजी बहुत नौकरी हैं। कहार तो आजकल टूँढे़ नहीं मिलते। तुम तो पुराने आदमी हो, तुम्हारे लिए नौकरी की क्या कमी। है वहाँ कोई ताजी चीज़? मुझसे कहने लगे खिचड़ी बनाइएगा या बाटी लगाइएगा? मैं ने कह दिया--सरकार, बुड्ढा आदमी है, रात को उसे मेरा भोजन बनवाने में कष्ट होगा, मैं कुछ बाजार ही में खा लूँगा। इसकी आप चिन्ता न करें। बोले, अच्छी बात है, कहार आपको दुकान पर मिलेगा। बोलो साह जी, कुछ