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पृष्ठ:निर्मला.djvu/५१

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निर्मला
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कल्याणी--बारात का सपना देख रही है क्या?

कृष्णा--वही चन्दर तो कह रहा है कि दो-तीन दिन में बारात आएगी। क्या न आएगी अम्माँ?

कल्याणी--एक बार तो कह दिया, सिर क्यों खाती है?

कृष्णा--सब के घर तो बारात आ रही है, हमारे यहाँ क्यों नहीं आती?

कल्याणी--तेरे यहाँ जो बारात लाने वाला था, उसके घर में आग लग गई।

कृष्ण--सच अम्माँ? तब तो सारा घर जल गया होगा। कहाँ रहते होंगे? बहिन कहाँ जाकर रहेगी?

कल्याणी--अरे पगली, तू तो बात ही नहीं समझती। आग नहीं लगी। वह हमारे यहाँ व्याह न करेगा।

कृष्णा--यह क्यों अम्माँ? पहले तो वहाँ ठीक हो गया था न?

कल्याणी--बहुत से रुपये माँगता है। मेरे पास उसे देने को रुपये नहीं हैं।

कृष्णा--क्या बड़े लालची हैं अम्माँ?

कल्याणी--लालची नहीं तो और क्या है! पूरा कसाई, निर्दई, दगाबाज़!

कृष्णा--तब तो अम्माँ बहुत अच्छा हुआ कि उसके घर बहिन का व्याह नहीं हुआ।बहिन उनके साथ कैसे रहती। यह तो खश होने की बात है अम्माँ, तुम रञ्ज क्यों करती हो?