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पृष्ठ:निर्मला.djvu/६०

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पाँचवाँ परिच्छेद
 

युवती के सामने खूब प्रेम की बातें करनी चाहिए-दिल निकाल कर रख देना चाहिए। यही उसके वशीकरण का मुख्य मन्त्र है। इसलिए वकील साहव अपने प्रेम-प्रदर्शन में कोई कसर न रखते थे; लेकिन निर्मला को इन बातों से घृणा होती थी। वही बातें, जिन्हें किसी युवक के मुख से सुन कर उसका हृदय प्रेम से उन्मत्त हो जाता, वकील साहब के मुँह से निकल कर उसके हृदय पर शर के समान आघात करती थीं! उनमें रस न था, उल्लास न था, उन्माद न था, हृदय न था, केवल बनावट थी, धोखा था; और था शुष्क, नीरस शब्दाडम्बर ! उसे इत्र और तेल बुरा न लगता, सैर-तमाशे बुरे न लगते, बनाव-सिंगार भी बुरा न लगता; बुरा लगता था केवल तोताराम के पास बैठना । वह अपना रूप और यौवन उन्हें न दिखाना चाहती थी, क्योंकि वहाँ देखने वाली आँखें न थीं। वह उन्हें इन रसों का आस्वादन करने के योग्य ही न समझती थी। कली प्रभात-समीर ही के स्पर्श से खिलती हैं। दोनों में समान सारस्य है। निर्मला के लिए वह प्रभात-समीर कहाँ थी?

पहला महीना गुजरते ही तोताराम ने निर्मला को अपना खजाञ्ची बना लिया। कचहरी से आकर दिन भर की कमाई उसे दे देते । उनका ख्याल था कि निर्मला इन रुपयों को देख कर फूली न समाएगी। निर्मला बड़े शौक से इस पद का काम अजाम देती। एक-एक पैसे का हिसाब लिखती, अगर कभी रुपये कम मिलते, तो पूछती-आज कम क्यों हैं ? गृहस्थी के सम्बन्ध में उनसे