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निर्मला
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बोलीं-तो क्या लौंडी बना कर रक्खोगे। लौंडी बन कर रहना है, तो इस घर की लौंडी न बनूँगी। अगर तुम्हारी यह इच्छा हो कि घर में कोईआग लगा दे और मैं खड़ी देखा करूँ। किसी को वेराह चलते देख, तो चुप साध लूँ। जो जिसके मन में आए करे; मैं मिट्टी की देवी बनी बैठी रहूँ, तो यह मुझसे न होगा। यह हुआ क्या, जो तुम इतना आपे से बाहर हो रहे हो। निकल गई सारी बुद्धिमानी, कल की लौडिया चोटी पकड़ कर नचाने लगी। कुछ पूछना न गूछना, बस उसने तार खींचा; और तुम काठ के सिपाही की तरह तलवार निकाल कर खड़े हो गए।

तोताo-सुनता तो हूँ कि तुम हमेशा खुचर निकालती रहती हो, बात-बात पर ताने देती हो।अगर कुछ सीख देनी हो, तो उसे प्यार से, मीठे शब्दों में देनी चाहिए। तानों से सीख मिलने के बदले उलटा और जी जलने लगता है।

रुक्मिणी-तो तुम्हारी यही मर्जी है कि किसी बात में न बोलूँ, यही सही!लेकिन फिर यह न कहना कि तुम तो घर में बैठी थी, क्यों नहीं सलाह दी।जब मेरी बातें जहर लगती हैं, तो मुझे क्या कुत्ते ने काटा है, जो बोलूँ।मसल है-'नाटों खेती,बहुरियों घर' मैं भी देखू बहुरिया कैसे घर चलाती है।

इतने में सियाराम और जियाराम स्कूल से आ गए।आते ही आते दोनों बुआ जी के पास जाकर खाने को माँगने लगे। रुक्मिणी ने कहा—जाकर अपनी नई अम्माँ से क्यों नहीं माँगते, मुझे बोलने का हुक्म नहीं है।