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पांँचवांँ परिच्छेद
 

तोताo-अगर तुम लोगों ने उस घर में क़दम रक्खे,तो टाँग तोड़ दूंँगा।वदमाशी पर कमर बॉधी है।

जियाराम जरा शांख था। बोला-उनको तो आप कुछ नहीं कहते, ही को धमकाते हैं। कभी पैसे नहीं देती।

सियाराम ने इस कथन का अनुमोदन किया-कहती हैं मुझे दिक़ करोगे, तो कान काट लूँगी । कहती हैं कि नहीं जिया?

निर्मला अपने कमरे से बोली-मैं ने कब कहा था कि तुम्हारे कान काट लूंगी। अभी से झूठ बोलने लगे।

इतना सुनना था कि तोताराम ने सियाराम के दोनों कान पकड़ कर उठा लिया। लड़का ज़ोर से चीख मार कर रोने लगा।

रुक्मिणी ने दौड़ कर बच्चे को मुन्शी जी के हाथ से छुड़ा लिया और वोलीं-वस,रहने भी दो; क्या वच्चे को मार ही डालोगे?हाय-हाय!कान लाल हो गया। सच कहा है, नई बीवी पाकर आदमी अन्धा हो जाता है।अभी से यह हाल है, तो इस घर के भगवान् ही मालिक हैं।

निर्मला अपनी विजय पर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी; लेकिनजवमुन्शीजी ने बच्चे का कान पकड़ कर उठा लिया, तो उससे न रहा गया।छुड़ाने को दौड़ी; पर रुक्मिणी पहले ही पहुँच गई थी। बोली-पहले आग लगा दी, अब, बुझाने दौड़ी हो । जब अपने लड़के होंगे, तब आँखें खुलेंगी। पराई पीर क्या जानो? निर्मला-खड़े तो हैं; पूछ लो न, मैंने क्या आग लगा दी? मैं ने इतना ही कहा था कि लड़के मुझे पैसों के लिए बार-बार दिक़