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छठा परिच्छेद
 

पास आते हुए झिझकता था लेकिन अब वह भी कभी-कभी आ वैठता। वह निर्मला का हमसिन था;लेकिन मानसिक विकास में पाँच साल छोटा। हॉकी और फुटवाल ही उसका संसार उसकी कल्पनाओं का मुक्त क्षेत्र तथा उसकी कामनाओं का हरा-भरा वारा था। इकहरे वदन का,छरीरा,सुन्दर,हँसमुख,लज्जाशील बालक था, जिसका घर से केवल भोजन का नाता था, वाक़ी सारे दिन न जाने कहाँ घूमता रहता। निर्मला उसके मुँह से खेल का बातें सुन कर थोड़ी देर के लिए अपनी चिन्ताओं को भूल जाती;और चाहती कि एक बार फिर वही दिन आ जाते,जब वह गुड़ियाँ खेलती और उनके व्याह रचाया करती थी,और जिसे अभी थोड़े,आह! बहुत ही थोड़े दिन गुजरे थे!

मुन्शी तोताराम अन्य एकान्त-सेवी मनुष्यों की भाँति विपयी जीव थे। कुछ दिन तो वह निर्मला कोसैर-तमाशे दिखाते रहे लेकिन जब देखा कि इसका कुछ फल नहीं होता,तो फिर एकान्त-संयम करने लगे। दिन भर के कठिन मानसिक परिश्रम के वाद उनका चित्त आमोद-प्रमोद के लिए लालायित हो जाता था,लेकिन जव अपनी विनोद-वाटिका में प्रवेश करते और उसके फूलों को मुरझाया, पौदों को सूखा और क्यारियों में धूल उड़ती हुई देखते,तो उनका जी चाहता क्यों न इस वाटिका को उजाड़ दूँ? निर्मला उनसे क्यों विरक्त रहती है,इसका रहस्य उनकी समझ में न आता था। दम्पत्तिशास्त्र के सारे मन्त्रों की परीक्षा कर चुके,पर मनोरथ न पूरा हुआ। अब क्या करना चहिए,यह उनकी समझ में न आता था।