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निर्मला
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एक दिन वह इसी चिन्ता में बैठे हुए थे कि उनके एक सहपाठी मित्र मुन्शी नयनसुखराम आकर बैठ गए;और सलाम-कलाम के बाद मुस्करा कर बोले-आजकल तो खूब गहरी छनती होगी,नई बीबी का आलिङ्गन करके जवानी का मज़ा आ जाता होगा। बड़े भाग्यवान हो! भई, रूठी हुई जवानी को मनाने का इससे अच्छा कोई उपाय नहीं कि नया विवाह होजाय।यहाँ तो जिन्दगी वबाल हो रही है। पत्नी जी इस बुरी तरह चिमटी हैं कि किसी तरह पिण्ड ही नहीं छोड़ती। मैं तो दूसरी शादी की फिक्र में हूँ। कहीं डौल हो तो ठीक-ठाक कर दो। दस्तूरी में एक दिन तुम्हें उसके हाथ के बने हुए पान खिला देंगे।

तोताराम ने गम्भीर भाव से कहा-कहीं ऐसी हिमाकत न कर बैठना,नहीं तो पछताओगे।लौडियाएँ कुछ लौंडोंही से खुश रहती हैं। हम तुम अब उस काम के नहीं रहे। सच कहता हूँ,मैं तो शादी करके पछता रहा हूँ। बुरी बला गले पड़ी। सोचा था, दो-चार साल और जिन्दगी का मज़ा उठा लूँ पर उलटी आँतें गले पड़ी।

नयनसुख-तुम क्या बातें करते हो। लौंडियों को पजे में लाना क्या मुश्किल है, जरा सैर-तमाशे दिखा दो, उसके रूप-रङ्ग की तारीफ कर दो; बस, रङ्ग जम गया!

तोताo-यह सब कर-धर के हार गया!

नयनo-अच्छा! कुछ इत्र-तेल, फूल-पत्ते, चाट-वाट का भी मजा चखाया?