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पृष्ठ:निर्मला.djvu/७७

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निर्मला
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साँप बड़ा क्रोधी जानवर है। कहीं काट ले, तो मुफ्त में प्राण से हाथ धोना पड़े़। बोले-डरता नहीं हूँ। साँप ही तो है,शेर तो नहीं;मगर साँप पर लाठी नहीं असर करती। जाकर किसी को भेज,किसी के घर से भाला लाए।

यह कह कर मुन्शी जी लपके हुए बाहर चले। मन्साराम बैठा खाना खा रहा था । मुन्शी जी तो बाहर गए, इधर वह खाना छोड़, अपना हॉकी का डण्डा हाथ में ले कमरे में घुस ही तो पड़ा;और तुरन्त चारपाई खींच ली । साँप मस्त था, भागने के बदले फन निकाल कर खड़ा हो गया । मन्साराम ने चटपट चारपाई की चादर उठा कर साँप के ऊपर फेंक दी, और ताबड़ तोड़ तीन-चार डण्डे कस कर जमाए । साँप चादर के अन्दर तड़प कर रह गया। तब उसेडण्डे पर उठाए हुए बाहर चला । मुन्शी जी कई आदमियों को साथ लिए चले आ रहे थे। मन्साराम को साँप को लटकाए देखा, तो सहसा उनके मुंह से एक चीख निकल पड़ी। मगर फिर 'सँभल गये और बोले-मैं तो आ ही रहा था, तुमने क्यों जल्दी की । दे दो कोई फेंक आए।

यह कह कर वह बड़ी बहादुरी के साथ रुक्मिणी के कमरे के द्वार पर जाकर खड़े हो गए; और कमरे को खूब देख-भाल कर मूंछों पर ताव देते हुए निर्मला के पास आकर बोले-मैं जब तक जाऊँ जाऊँ मन्साराम ने मार डाला | बेसमझ लड़का डण्डा लेकर दौड़ पड़ा । साँप को हमेशा भाले से मारना चाहिए । यही तो . लड़कों में ऐब है। मैंने ऐसे-ऐसे कितने साँप मारे हैं। साँप को