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सातवां परिच्छेद
 

के जवाबों को सुन-सुन कर वकील साहब भी झल्लाते थे। वह कोई ऐसा प्रश्न करना चाहते थे,जिसका जवाब मन्साराम से न बन पड़े। देखना चाहते थे कि इसका कमजोर पहलू कहाँ है। यह देख कर अब उन्हें सन्तोष न हो सकता कि यह क्या करता है। वह यह देखना चाहते थे कि यह क्या नहीं करता। कोई अभ्यस्त परीक्षक मन्साराम की कमजोरियों को आसानी से दिखा देता,पर वकील साहब अपनी आधी शताब्दी की भूली हुई शिक्षा के आधार पर इतने सफल कैसे होते?अन्त में जब उन्हें अपना गुस्सा उतारने के लिए कोई बहाना न मिला,तो बोले मैं देखता हूँ,तुम सारे दिन इधर-उधर मटर-गश्त किया करते हो,मैं तुम्हारे चरित्र को तुम्हारी बुद्धि से बढ़ कर समझता हूँ और तुम्हारा यों आवारा घूमना मुझे कभी गवारा नहीं हो सकता।

मन्साराम ने निर्भीकता से कहा-मैं शाम को एक घण्टा खेलने के लिए जाने के सिवा दिन भर कहीं नहीं जाता।आप अम्माँ या वुआ जी से पूछ लें। मुझे खुद इस तरह घूमना पसन्द नहीं। हाँ,खेलने के लिए हेडमास्टर साहब आग्रह करके बुलाते हैं,तो मजबूरन जाना पड़ता है।अगर आप को मेरा खेलने जाना पसन्द नहीं है, तो कल से न जाऊँगा।

मुन्शी जी ने देखा कि बातें दूसरे ही रुख पर आ रही हैं,तो तीन स्वर में वोले-मुझे इस बात का इतमीनान क्यों कर हो कि खेलने के सिवा और कहीं नहीं घूमने जाते। मैं बराबर शिकायतें सुनता हूँ।