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८७ सातवां परिच्छेद
हॉ,जरा इसके मनोभावों को टटोलना चाहिए। बोले-यह तो मैं जानता हूँ कि तुम्हें दो-चार मिनिट पढ़ाने से उसका कोई हरज नहीं होता, लेकिन आवारा लड़का है, अपना काम न करने का उसे एक वहाना तो मिल जाता है। कल अगर फेल हो गया, तो साफ कह देगा-मैं तो दिन भर पढ़ाता रहता था। मैं तुम्हारे लिए कोई मिस नौकर रख दूंगा। कुछ ज्यादा खर्च न होगा। तुमने मुझसे पहले कहा ही नहीं। यह तुम्हें भला क्या पढ़ा पाता होगा? दो-चार शब्द वता कर भाग जाता होगा। इस तरह तो तुम्हें कुछ भी न आएगा।

निर्मला ने तुरत इस आक्षेप का खण्डन किया-नहीं, यह बात तो नहीं, वह मुझे दिल लगा कर पढ़ाते हैं, और उनकी शैली भी कुछ ऐसी है कि पढ़ने में मन लगता है। आप एक दिन जरा उनका समझाना देखिए।मैं तो समझती हूँ किमिस इतने ध्यान से न पढ़ाएगी।

मुन्शी जी अपनी प्रश्न-कुशलता पर मूंछोंको ताव देते बोलेदिन में एक ही बार पढ़ाता है या कई वार?

निर्मला अव भी इन प्रश्नों का शय न समझी। बोली-पहले तो शाम ही को पढ़ा देते थे,अब कई दिनों से एक वार आकर लिखना भी देख लेते हैं। वह तो कहते हैं कि मैं अपने क्लास में सब से अच्छा हूँ। अभी परीक्षा में इन्हीं को प्रथम स्थान मिला था, फिर आप कैसे समझते हैं कि उनका पढ़ने में जी नहीं लगता। मैं इसलिए और भी कहती हूँ कि दीदी समझेगी-इसी ने यह