आग लगाई है। मुफ्त में मुझे ताने सुनने पड़ेंगे। अभी जरा ही देर हुई धमका कर गई हैं।
मुन्शी जी ने दिल में कहा-खूब समझता हूँ। तू कल की छोकरी होकर मुझे चराने चली है । दीदी का सहारा लेकर अपना मतलब पूरा करना चाहती है। बोले-मैं नहीं समझता बोर्डिङ्ग का नाम सुन कर क्यों लौंडे की नानी मरती है। और लड़के खुश होते हैं कि अब अपने दोस्तों में रहेंगे, यह उलटे रो रहा है। अभी कुछ दिन पहले तक यह दिल लगा कर पढ़ता था। यह उसी मेहनत का नतीजा है कि अपनी क्लास में सब से अच्छी है। लेकिन इधर कुछ दिनों से इसे सैर-सपाटे का चाका पड़ चला है। अगर अभी से रोक-थाम न की गई, तो पीछे कुछ करते-धरते न बन पड़ेगा। तुम्हारे लिए मैं एक मिस रख दूंगा। __
दूसरे दिन मुन्शी जी प्रातःकाल कपड़े-लत्ते पहन कर बाहर निकले । दीवानखाने में कई मुअकिल बैठे हुए थे। इनमें एक राजा साहब भी थे, जिनसे मुन्शी जी को कई हजार सालाना मेहनताना मिलता था। मगर मुन्शी जी उन्हें वहीं बैठे छोड़ दस मिनिट में आने का वादा करके वग्घी पर बैठ कर स्कूल के हेडमास्टर के यहाँ जा पहुँचे। हेडमास्टर साहेब बड़े सजन पुरुष थे । वकील साहब का बहुत आदर-सत्कार किया; पर उनके यहाँ एक लड़के की जगह भी खाली न थी। सभी कमरे 'भरे हुए थे। इन्स्पेक्टर साहब की वड़ी.ताकीद थी कि मुफस्सिल के लड़कों को जगह देकर तव शहर के लड़कों को लिया जाय ।