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पृष्ठ:निर्मला.djvu/९७

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निर्मला
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मुझे आवारा और बदमाश कह रहे हैं! मैं इस योग्य भी नहीं कि इस घर में रह सकूँ। यह सोचते-सोचते मन्साराम अपार वेदना से फूट-फूट कर रोने लगा।

उसी समय तोताराम कमरे में आकर खड़े हो गए। मन्साराम ने चटपट आँसू पोंछ डाले; और सिर झुका कर खड़ा हो गया। मुन्शी जी ने शायद यह पहली बार उसके कमरे में कदम रक्खा था। मन्साराम का दिल धड़-धड़ करने लगा कि देखें आज क्या आफत आती है। मुन्शी जी ने उसे रोते देखा तो एक क्षण के लिए उनका वात्सल्य घोर निद्रा से चौंक पड़ा। घबरा कर बोले-क्यों, रोते क्यों हो बेटा, किसी ने कुछ कहा है? मन्साराम ने बड़ी मुश्किल से उमड़ते हुए आँसुओं को रोक कर कहा-जी नहीं, रोता तो नहीं हूँ |

मुन्शी जी-तुम्हारी अम्माँ ने तो कुछ नहीं कहा?

मन्सा०-जी नहीं, वह तो मुझसे बोलती ही नहीं। मुन्शी जी क्या करूँ बेटा, शादी तो इसलिए की थी कि बच्चों को माँ मिल जायगी; लेकिन वह आशा नहीं पूरी हुई। तो क्या बिलकुल नहीं बोलती?

मन्सा-जी नहीं, इधर महीनों से नहीं बोली।

मुन्शी जी-विचित्र स्वभाव की औरत है, मालूम ही नहीं होता क्या चाहती है। मैं जानता कि उसका ऐसा मिजाज होगा तो कभी शादी न करता। रोज एक न एक बात लेकर उठ खड़ी होती है। उसी ने मुझसे कहा था कि यह दिन भर न जाने कहाँ गायब रहता