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सातवां परिच्छेद
 

है। मैं उसके दिल की बात क्याजानता था? समझा तुम कुसङ्गत में पड़ कर शायद दिन भर घूमा करते हो। कौन ऐसा पिता है, जिसे अपने प्यारे पुत्र को आवारा फिरते देख कर रन न हो? इसीलिए मैंने तुम्हें वोर्डिङ्ग हाउस में रखने का निश्चय किया था। बस, और कोई वात नहीं थी बेटा! मैं तुम्हारा खेलना-कूदना बन्द नहीं करना चाहता था। तुम्हारी यह दशा देख कर मेरे दिल के टुकड़े हुए जाते हैं। कल मुझे मालूम हुआ कि मैं भ्रम में था। तुम शौक से खेलो, सुबह-शाम मैदान में निकल जाया करो । ताजी हवा से तुम्हें लाभ होगा। जिस चीज़ की जरूरत हो, मुझसे कहो; उनसे कहने की जरूरत नहीं। समझ लो कि वह घर में है ही नहीं। तुम्हारी माता छोड़ कर चली गई, तो मैं तो हूँ।

वालक का सरल, निष्कपट हृदय पितृ-प्रेम से पुलकित हो उठा। मालूम हुआ कि साक्षात् भगवान् खड़े हैं । नैराश्य और लोभ से विकल होकर उसने मन में अपने पिता को निष्ठुर और न जाने क्या-क्या समझ रक्खा था। विमाता से उसे कोई गिला न था। अब उसे ज्ञात हुआ कि मैं ने अपने देव-तुल्य पिता के साथ कितना अन्याय किया है। पितृ-भक्ति की एक तरङ्ग सी हृदय में उठी; और वह पिता के चरणों पर सिर रख कर रोने लगा। मुन्शी जी करुणा से विह्वल हो गए। जिस पुत्र को एक क्षण भर आँखों से दूर देख कर उनका हृदय व्यग्र हो उठता था, जिसके शील, बुद्धि और चरित्र की अपने पराए सभी बखान करते थे, उसी के प्रति उनका हृदय इतना कठोर क्यों हो गया? वह अपने