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जब कहीं न पाया तो छत पर आई और उसे देखते ही हँसकर बोली-तुम यहाँ आकर छिपी बैठी हो और मैं तुम्हें ढूँढ़ती फिरती हूँ। चलो, बग्घी तैयार करा आई हूँ।

निर्मला ने उदासीन भाव से कहा-तू जा, मैं न जाऊँगी।

कृष्णा-नहीं मेरी अच्छी दीदी, आज जरूर चलो। देखो, कैसी ठंडी-ठंडी हवा चल रही है।

निर्मला—मेरा मन नहीं चाहता, तू चली जा।

कृष्णा की आँखें डबडबा आई। काँपती हुई आवाज से बोली-आज तुम क्यों नहीं चलतीं, मुझसे क्यों नहीं बोलतीं, क्यों इधर-उधर छिपी-छिपी फिरती हो? मेरा जी अकेले बैठे-बैठे घबड़ाता है। तुम न चलोगी तो मैं भी न जाऊँगी। यहीं तुम्हारे साथ बैठी रहूँगी।

निर्मला-और जब मैं चली जाऊँगी, तब क्या करेगी? तब किसके साथ खेलेगी और किसके साथ घूमने जाएगी, बता?

कृष्णा—मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। अकेले मुझसे यहाँ न रहा जाएगा।

निर्मला मुसकराकर बोली-तुझे अम्माँ न जाने देंगी।

कृष्णा-तो मैं भी तुम्हें न जाने दूंगी। तुम अम्माँ से कह क्यों नहीं देतीं कि मैं न जाऊँगी।

निर्मला—कह तो रही हूँ, कोई सुनता है!

कृष्णा-तो क्या यह तुम्हारा घर नहीं है?

निर्मला-नहीं, मेरा घर होता तो कोई क्यों जबरदस्ती निकाल देता?

कृष्णा—इसी तरह किसी दिन मैं भी निकाल दी जाऊँगी?

निर्मला-

और नहीं, क्या तू बैठी रहेगी! हम लड़कियाँ हैं, हमारा घर कहीं नहीं होता।

कृष्णा-चंदर भी निकाल दिया जाएगा?

निर्मला-चंदर तो लड़का है, उसे कौन निकालेगा?

कृष्णा–तो लड़कियाँ बहुत खराब होती होंगी?

निर्मला-खराब न होतीं तो घर से भगाई क्यों जाती?

कृष्णा-चंदर इतना बदमाश है, उसे कोई नहीं भगाता। हम-तुम तो कोई बदमाशी भी नहीं करतीं। एकाएक चंदर धम-धम करता हुआ छत पर आ पहुँचा और निर्मला को देखकर बोला—अच्छा आप यहाँ बैठी हैं। ओहो! अब तो बाजे बजेंगे, दीदी दुलहन बनेंगी, पालकी पर चढ़ेगी, ओहो! ओहो!

चंदर का पूरा नाम चंद्रभानु सिन्हा था। निर्मला से तीन साल छोटा और कृष्णा से दो साल बड़ा।

निर्मला-चंदर, मुझे चिढ़ाओगे तो अभी जाकर अम्माँ से कह दूँगी।

चंद्र-तो चिढ़ती क्यों हो? तुम भी बाजे सुनना। ओ हो-हो! अब आप दुलहन बनेंगी। क्यों किशनी, तू बाजे सुनेगी न, वैसे बाजे तूने कभी न सुने होंगे।

कृष्णा-क्या बैंड से भी अच्छे होंगे?

चंद्र–हाँ-हाँ, बैंड से भी अच्छे, हजार गुने अच्छे, लाख गुने अच्छे। तुम जानो क्या? एक बैंड सुन लिया तो समझने लगीं कि उससे अच्छे बाजे नहीं होते। बाजे बजानेवाले लाल-लाल वरदियाँ और काली-काली टोपियाँ पहने होंगे। ऐसे खूबसूरत मालूम होंगे कि तुमसे क्या कहूँ। आतिशबाजियाँ भी होंगी, हवाइयाँ आसमान में उड़ जाएँगी और वहाँ तारों में लगेंगी तो लाल, पीले, हरे, नीले तारे टूट-टूटकर गिरेंगे। बड़ा मजा आएगा।

कृष्णा और क्या-क्या होगा चंदन, बता दे मेरे भैया?