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मुंशीजी ने हाथ छुड़ाकर कहा-तुम भी बच्चों की-सी जिद्द कर रही हो। दस हजार का नुकसान ऐसा नहीं है, जिसे मैं यों ही उठा लूँ। मैं रो नहीं रहा हूँ, पर मेरे हृदय पर जो बीत रही है, वह मैं ही जानता हूँ। यह चोट मेरे कलेजे पर लगी है। मुंशीजी और कुछ न कह सके। गला फँस गया। वह तेजी से कमरे से निकल आए और थाने पर जा पहुँचे। थानेदार उनका बहुत लिहाज करता था। उसे एक बार रिश्वत के मुकदमे से बरी करा चुके थे। उनके साथ ही तफ्तीश करने आ पहुँचा। नाम था अलायार खाँ।

शाम हो गई थी। थानेदार ने मकान के अगवाड़े-पिछवाड़े घूम-घूमकर देखा। अंदर जाकर निर्मला के कमरे को गौर से देखा। ऊपर की मुँडेर की जाँच की। मुहल्ले के दो-चार आदमियों से चुपके-चुपके कुछ बातें कीं और तब मुंशीजी से बोले जनाब, खुदा की कसम, यह किसी बाहर के आदमी का काम नहीं। खुदा की कसम, अगर कोई बाहर का आदमी निकले तो आज से थानेदारी करना छोड़ दूँ। आपके घर में कोई मुलाजिम ऐसा तो नहीं है, जिस पर आपको शुबहा हो।

मुंशीजी-घर में तो आजकल सिर्फ एक महरी है।

थानेदार-अजी, वह पगली है। यह किसी बड़े शातिर का काम है, खुदा की कसम।

मुंशीजी-तो घर में और कौन है? मेरे दोनों लड़के हैं, स्त्री है और बहन है। इनमें से किस पर शक करूँ?

थानेदार-खुदा की कसम, घर ही के किसी आदमी का काम है। चाहे, वह कोई हो, इंशाअल्लाह, दो-चार दिन में मैं आपको इसकी खबर दूँगा। यह तो नहीं कह सकता कि माल भी सब मिल जाएगा, पर खुदा की कसम, चोर जरूर पकड़ दिखाऊँगा।

थानेदार चला गया तो मुंशीजी ने आकर निर्मला से उसकी बातें कहीं। निर्मला सहम उठी—आप थानेदार से कह दीजिए, तफ्तीश न करें, आपके पैरों पड़ती हूँ।

मुंशीजी-आखिर क्यों?

निर्मला-अब क्या बताऊँ? वह कह रहा है कि घर ही के किसी का काम है।

मुंशीजी-उसे बकने दो।

जियाराम अपने कमरे में बैठा हुआ भगवान् को याद कर रहा था। उसके मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। सुन चुका था कि पुलिसवाले चेहरे से भाँप जाते हैं। बाहर निकलने की हिम्मत न पड़ती थी। दोनों आदमियों में क्या बातें हो रही हैं, यह जानने के लिए छटपटा रहा था। ज्योंही थानेदार चला गया और भूँगी किसी काम से बाहर निकली, जियाराम ने पूछा-थानेदार क्या कर रहा था भूँगी?

भूँगी ने पास आकर कहा-दाढ़ीजार कहता था, घर ही के किसी आदमी का काम है, बाहर को कोई नहीं है।

जियाराम-बाबूजी ने कुछ नहीं कहा?

भूँगी-कुछ तो नहीं कहा, खड़े 'हूँ-हूँ' करते रहे। घर में एक भूँगी ही गैर है न! और तो सब अपने ही हैं।

जियाराम-मैं भी तो गैर हूँ, तू ही क्यों?

भूँगी-तुम गैर काहे हो भैया?

जियाराम-बाबूजी ने थानेदार से कहा नहीं, घर में किसी पर उनका शुबहा नहीं है।

भूँगी-कुछ तो कहते नहीं सुना। बेचारे थानेदार ने भले ही कहा-भूँगी तो पगली है, वह क्या चोरी करेगी। बाबूजी तो मुझे फँसाए ही देते थे।

जियाराम-तब तो तू भी निकल गई। अकेला मैं ही रह गया। तू ही बता, तूने मुझे उस दिन घर में देखा था?

भूँगी-नहीं भैया, तुम तो ठेठर देखने गए थे।