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प्राक्कथन


प्रणीत मेघनाद-वध और बाबू हेमचंद्र बंद्योपाध्याय-प्रणीत वृत्र-संहार तथा मराठी में वासुदेव वामन शास्त्री खरे का लिखा हुआ यशवंतराव-महाकाव्य -- ये सब महाकाव्यों की कक्षा में स्थान पाने योग्य हैं। यद्यपि इनमें दंडी-कथित महाकाव्य के सारे लक्षण नहीं पाए जाते, तथापि इनका कवित्व इतना मनोहर है कि इनको महाकाव्य कहना किसी प्रकार अनुचित नहीं। कवि की कल्पना-शक्ति स्फुरित होकर जब अभीष्ट वस्तु का वर्णन करती है, तभी कविता सरस और हृदयग्राहिणी होती है; नियम-बद्ध हो जाने से ऐसा कदापि नहीं हो सकता। क्योंकि आलंकारिकों के कहे हुए मार्ग का पद-पद पर अनुसरण करने से कविता लिखने में जिन प्रसंगों की कोई आवश्यकता नहीं होती, वे भी बलात् लाने पड़ते हैं, और तदनुकूल वर्णन करना पड़ता है। यह बलात्कार कविता के रमणीयत्व का विघातक होता है। अतः हम पूर्वोक्त नियमरूपी श्रृंखला से अतिशय बद्ध होने के पक्ष में नहीं।