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श्रीहर्ष नाम के तीन पुरुष

शतक का बहुत कुछ वृत्तांत ज्ञात होता है। ह्वेनसांग ने भारत- वर्ष में जो कुछ देखा, और जिन-जिन राजों की राजधानियों अथवा राज्यों में वह गया, उन सबका वर्णन उसने अपने ग्रंथ में किया है। इसी ग्रंथ में ह्वेनसांग ने कान्यकुब्जाधिपति श्रीहर्ष का भी वर्णन किया है। इस राजा ने ६०६ से ६४८ ईसवी तक राज्य किया। कई विद्वानों ने बड़ी योग्यता से इस समय का निर्णय किया है। मिस्टर रमेशचंद्र दत्त, डॉक्टर हाल, मिस्टर विसेंट स्मिथ सभी इससे सहमत हैं। यह वही श्रीहर्ष है, जिसके आश्रय में प्रसिद्ध कादंबरीकार बाण पंडित था। बाण ने अपने हर्षचरित-नामक गद्यात्मक ग्रंथ में इस राजा का चरित वर्णन किया है, और अपना राजाश्रित होना भी बताया है।

नैषध-चरित के कर्ता ने कान्यकुब्ज-नरेश द्वारा सम्मानित होना स्पष्ट लिखा है। अतः यह काव्य इस श्रीहर्ष की कृति नहीं हो सकती। कान्यकुब्ज का राजा कान्यकुब्ज के राजा से किस प्रकार आहत होगा ? फिर एक समय एक ही देश में दो राजे किस प्रकार रह सकेंगे?

ऊपर हम लिख आए हैं कि 'रत्नावली', 'प्रियदर्शिका' और 'नागानंद' भी श्रीहर्ष के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन पुस्तकों की प्रस्तावना में लिखा है कि राजा श्रीहर्ष ही ने इनकी रचना की है। अब देखना चाहिए कि यहाँ किस श्रीहर्ष से अभिप्राय है। ये दोनो नाटक काश्मीराधिपति श्रीहर्ष-कृत नहीं हो सकते, क्योंकि राजतरंगिणी में इनका कहीं नाम नहीं। जब छोटे-छोटे