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नैषध-चरित-चर्चा

से ख्यात हैं; परंतु ये दोनो ग्रंथ भी काश्मीर-नरेश श्रीहर्ष के लिखे हुए नहीं हैं। यह बात आगे प्रमाणित की जायगी।

दूसरा श्रीहर्ष कान्यकुब्ज का राजा था। इसका पूरा नाम हर्ष- देव था। इस राजा के शासन आदि का वर्णन विसेंट स्मिथ साहब ने बड़े विस्तार से लिखा है। यह उनकी पुस्तक— Early History of India में मिलेगा।

ईसवी सन् के अनुमान ६०० वर्ष पहले बौद्धमत का प्रादुर्भाव हमारे देश में हुआ। यह मत कई सौ वर्षों तक बड़ी धूम-धाम से भरतखंड में प्रचलित रहा। परंतु ईसवी सन के आरंभ में वैदिक और बौद्धमतावलंबियों में परस्पर वाद- प्रतिवाद होते-होते इतना धर्म-विप्लव हुआ कि बौद्ध लोगों को यह देश छोड़कर अन्यान्य देशों को चले जाना पड़ा। उन लोगों ने लंका, कोरिया, श्याम, चीन, तिब्बत आदि देशों में जाकर अपना जी बचाया, और अपना धर्म रक्षित रक्खा। उन देशों में यह मत बड़ी शीघ्रता से फैल गया। इन्ही देशांतरित बौद्ध लोगों में से ह्वेनसांग-नामक एक प्रवासी, ईसवी सन् के सप्तम शतक के प्रारंभ में, बुद्ध की जन्मभूमि भारतवर्ष का दर्शन करने और संस्कृत-भाषा सीखने के लिये चीन से आया। १६ वर्ष तक इस देश में रहकर वह ६४५ ईसवी में चीन को लौट गया । वहाँ जाकर उप्सने प्रवास-वर्णन-विषयक, चीनी भाषा में, एक ग्रंथ लिखा । इस ग्रंथ का अनुवाद बील साहब ने अँगरेजी में किया है। उसे देखने से भारतवर्ष-विषयक सप्तम