सन् की दूसरी और चौथी शताब्दी के मध्य में वर्तमान थे। परंतु डॉक्टर कर्न[१] के मत में यह छठी शताब्दी के आदि में थे। बाबू रमेशचंद्र दत्त[२] का भी वही मत है, जो डॉक्टर कर्न का है। अब तो कालिदास का समय ईसवी सन् की पाँचवीं या छठी शताब्दी भी माना जाने लगा है। अतः यह सिद्ध है कि धावक कवि छठी शताब्दी के प्रथम हुआ है। जब यह सिद्ध है, तब श्रीहर्ष से उसका धन पाना किसी प्रकार संभव नहीं, क्योंकि दोनो श्रीहर्ष उसके बहुत काल पीछे हुए हैं।
रत्नावली धावक ने नहीं बनाई; काश्मीर-नरेश श्रीहर्ष ने नहीं बनाई। फिर बनाई किसने? यदि उसे कान्यकुब्जाधीश श्रीहर्षकृत मानते हैं, तो इस राजा के सुशिक्षित और विद्वान् होने पर भी इसका कवि होना कहीं नहीं लिखा। यदि नैषध-चरितकार श्रीहर्ष-कृत मानते हैं, तो नैषध में उसी कवि के किए हुए और ग्रंथों के जो नाम हैं, उनमें रत्नावली का नाम नहीं आया। इसलिये यह शंका सहज ही उद्भूत होती है कि यह नाटिका किसी और ही ने लिखी है।
एक बार डॉक्टर बूलर ने काश्मीर में घूम-फिरकर वहाँ अनेक हस्त-लिखित पुस्तकें प्राप्त की। इन पुस्तकों में काव्य-प्रकाश की जितनी प्रतियाँ उनको मिली, उन सभी में 'श्रीहर्षा देर्धावकादीनामिव धनम्' के स्थान में 'श्रीहर्षा देर्बाणादीनामिव धनम्'—यह