पाठ मिला । इस विषय पर उन्होंने एक लेख प्रकाशित किया। उसी के आधार पर डॉक्टर हाल ने वासवदत्ता की भूमिका में यह लिखा है कि बाण ही ने कान्यकुब्जाधीश्वर श्रीहर्ष के नाम से रत्नावली और नागानंद की रचना की है । जिस मम्मट भट्ट ने काव्य-प्रकाश बनाया है, वह काश्मीर ही का निवासी था। अतएव काश्मीर में प्रचलित काव्य-प्रकाश की प्रतियों में धावक का नाम न मिलने से यही अनुमान होता है कि वह इस ओर की पुस्तकों में प्रमाद-वश लिखा गया है, और एक को देख दूसरी प्रति करने में वही प्रमाद होता चला आया है। किसी-किसी का यह भी मत है कि बाण भट्ट ही का दूसरा नाम धावक था। इस समय अनेक पुरातत्त्व-वेत्ताओं की यही सम्मति है कि रत्नावली, नागानंद, प्रियदर्शिका, कादंबरी का पूर्वाद्ध, हर्ष- चरित, पार्वती-परिणय-नाटक और चंडीशतक ग्रंथ एक ही कवि अर्थात् बाण ही के रचे हुए हैं । उसी ने रत्नावली की रचना करके कान्यकुब्ज के राजा श्रीहर्ष से बहुत-सा धन प्राप्त किया, और उसी ने हर्षचरित-नामक ग्रंथ में श्रीहर्ष का चरित लिखा है। परंतु ऐसे भी कई विद्वान् हैं, जो कान्यकुब्ज-नरेश श्रीहर्ष को कवि मानते हैं, और रत्नावली आदि नाटकों की रचना करनेवाला उसी को समझते हैं।
बाण भट्ट के विषय में एक आख्यायिका प्रसिद्ध है। वह प्रसंग-वश हम यहाँ लिखे देते हैं—
हर्षचरित के प्रथमोच्छवास के अंत में वाण ने अपने पिता