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नैषध-चरित-चर्चा

इससे यह जाना गया कि श्रीहर्ष के पिता का नाम श्रीहीर और माता का नाम मामल्लदेवी था। परंतु ये कौन थे? कब हुए? कहाँ रहे? कहाँ-कहाँ गए? इत्यादि बातों का विशेष पता नहीं लगता। इनके विषय में जो विशेष बातें जानी गई हैं, उनका उल्लेख आगे किया जायगा। यहाँ पर विद्वानों के कुछ अनुमानों का उल्लेख किया जाता है।

डॉक्टर बूलर का अनुमान है कि नैषध-चरित ईसवी सन् की बारहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ होगा। बाबू रमेशचंद्रदत लिखते हैं[१] कि राजशेखर ने श्रीहर्ष की जन्मभूमि काशी बतलाई है और बंगदेश के प्रधान कवि विद्यापति ने, जो चौदहवीं शताब्दी में हुए हैं, यहाँ तक कहा है कि श्रीहर्ष बंगदेश के वासी थे। बाबू रमेशचंद्रदत्त का कथन है कि पुरातत्त्ववेत्ता विद्वानों ने, श्रीहर्ष का पश्चिमोत्तर प्रदेश छोड़कर, बंगदेश को जाना जो अनुमान किया है, उसका सत्य होना संभव है। परंतु कोई-कोई नैषध-चरित के सोलहवें सर्ग के अंतिम—

काश्मीरैर्महिते[२] चतुर्दशतयीं विद्यां विदद्भिर्महा-
काव्ये तद्भुवि नैषधीयचरिते सर्गोऽगमत् षोडशः।

इस श्लोकार्द्ध से श्रीहर्ष का संबंध काश्मीर से बतलाते हैं। श्लोकार्द्ध का भाव यह है कि चतुर्दश विद्याओं में पारंगत


  1. See, History of Civilization in ancient India, Vol. III.
  2. 'महिते' पद का प्रयोग करना श्रीहर्ष की दूसरी दर्पोक्ति हुई।