पृष्ठ:नैषध-चरित-चर्चा.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०
नैषध-चरित-चर्चा

काश्मीरवासी पंडितों के द्वारा नैषध-चरित की पूजा होना संभव है। परंतु इससे यह नहीं सिद्ध होता कि श्रीहर्ष उस देश के रहनेवाले थे। श्रीहर्ष किसी कान्यकुब्ज राजा के यहाँ थे, यह तो निर्भ्रांत ही है। राजों के यहाँ देश-देशांतर से पंडित आया ही करते हैं। काश्मीर-देश के पंडित कान्यकुब्जे- श्वर के यहाँ आए होंगे और प्रसंगवशात् वहाँ नैषध-चरित को देखकर उसकी प्रशंसा की होगी। अथवा नैषध-चरित को काश्मीर ही में देखकर उन्होंने उसकी प्रशंसा की होगी। इसमें आक्षेप का कारण नहीं देख पड़ता। विद्या के लिये काश्मीर प्रसिद्ध था। इस कारण पंडितों की समालोचना के लिये श्रीहर्ष के द्वारा नैषध-चरित का वहाँ भेजा जाना असंभव नहीं। इस विषय में लिखित प्रमाण भी मिला है। उसका उल्लेख आगे होगा। अतएव इस इतनी बात से श्रीहर्ष का काश्मीरवासी होना प्रमाणित नहीं हो सकता। रही मम्मट भट्ट और श्रीहर्ष को आख्यायिका, सो वह ऐतिहासिक न होने के कारण किसी प्रकार विश्वसनीय नहीं। अकबर और बीरबल तथा भोज ओर कालिदास-विषयक किंवदंतियाँ जैसे नित्य नई सुनते हैं, वैसे ही यह भी है।

फ़र्रुखाबाद के ज़िले में क़न्नौज के पास मीराँसराय नाम का एक क़स्बा है। वहाँ विशेष करके कान्यकुब्ज मिश्र लोगों की बस्ती है। ये मिश्र श्रीहर्ष को अपना पूर्वज बतलाते हैं और कहते हैं कि हम लोग पहले त्रिपाठी थे, परंतु श्रीहर्षजी ने एक यज्ञा