परंतु इस बात का भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता।
नव साहसांक तो पदवी-मात्र जान पड़ती है। नव-साह- सांक-चरित-नामक काव्य, जो प्रकाशित हो गया है, चंपू नहीं, किंतु छंदोबद्ध महाकाव्य है । वह परिमल उर्फ पद्मगुप्त कवि की रचना है ; श्रीहर्ष का बनाया हुआ नव-साहसांक- चरित-चंपू और ही है । नव-साहसांक-चरित में उज्जयिनी के राजा सिंधराज का वर्णन है-वर्णन क्या है, तद्विषयक एक गप-सी है । उसमें राजा का पातालगमन और नाग-कन्या शशिप्रभा के साथ उसके विवाह इत्यादि की असंभवनीय बातें है । यह राजा परमारवंशीय था। इसके मंत्री का नाम यशोभट था। डॉक्टर बूलर और प्रोफेसर जकरिया ने नव-साहसांक- चरित पर एक उत्तम लेख लिखा है । नव-साहसांक गौड़ देश का नहीं, किंतु मालवे का राजा था। उसका स्थिति-काल ९९५-१०१० ईसवी माना जाता है । इन बातों से सिद्ध है कि नव-साहसांक-चरित से श्रीहर्ष का कोई संबंध नहीं । वह मालवे के राजा सिंधुराज के बाद हुए हैं और कन्नौज के राजा जयचंद के समय में विद्यमान थे । अतएव उनका स्थिति-काल ईसा की बारहवीं शताब्दी मालूम होता है। मीराँसराय के मिश्र लागों का श्रीहर्ष को अपना पूर्वज कहना और क़न्नौज के राजा के यहाँ उनका मान पाना इत्यादि बातें इस अनुमान की पुष्टि करती हैं।