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पृष्ठ:नैषध-चरित-चर्चा.djvu/४७

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नैषध-चरित-चर्चा

काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गोऽगमत्पन्चमः ।
(६) षष्ठः खण्डनखण्डतोऽपि सहजात् चोदक्षमे तन्महा-
काव्येऽयं व्यगलालस्य चरिते सर्गो निसर्गोज्ज्वलः ।
(७) यातः सप्तदशः स्वसुः सुसशि च्छन्दःप्रशस्तेमहा-
काव्ये तद्भुवि नैषधीयचरिते सगों निसर्गोज्ज्वलः ।
(८) यातोऽस्मिन् शिवशक्तिसिद्धिभगिनी सौभ्रात्रभव्ये महा-
काव्ये तस्य कृतौ नलीयचरिते सर्गोऽयमष्टादशः।

नैषध-चरित और खंडनखंड-खाद्य, श्रीहर्ष के ये ही दो ग्रंथ उपलब्ध हैं। खंडनखंड-खाद्य श्रीहर्ष के अगाध पांडित्य और नैषध-चरित उनके अप्रतिम कवित्व का द्योतक है। खंडन- खंड-खाद्य (खंडनरूपी खंड शर्करा का भोजन) में अन्यान्य मतों का अद्भुत रीति से खंडन करके, एकमात्र वेदांत-मत का मंडन किया गया हैछ । स्थैर्य विचार में, नहीं कह सकते, क्या है; परंतु अन्यान्य ग्रंथों के नाम ही से उनके विषय का बहुत कुछ अनुमान हो सकता है। गोडोर्वोशकल- प्रशस्ति में गौड़ेश्वर को प्रशंसा ; विजय-प्रशस्ति में विजय- नामक राजा की प्रशंसा; और छंदःप्रशस्ति में छंद-नामक राजा की प्रशंसा होगी। विजय प्रशस्ति के विषय में तो टीका- कार मल्लिनाथ कुछ नहीं कहते; परंतु छंदःप्रशस्ति के विषय


  • स्मरण होता है कि महामहोगध्याय डॉक्टर गंगानाथ झा ने,

कुछ समय हुआ, खंडनखंड-खाद्य का अनुवाद अँगरेज़ी में करके उसे प्रकाशित किया है।