नैषध-चरित में नल और दमयंती की कथा है, इस बात को प्रायः सभी जानते हैं । तथापि किसी-किसी की यह समझ है कि इस काव्य में दमयंती का वन में परित्याग भी वर्णन किया गया है। यह केवल भ्रम है। परित्याग-विषयक कोई बात इसमें नहीं। उस विषय के कवित्व का जिसे स्वाद लेना हो, उसे सहृदयानंद-नामक काव्य देखना चाहिए । नैषध की कथा संक्षेपतः इस प्रकार है—
विदर्भ-देश के राजा भीम के एक कन्या थी। उसका नाम था दमयंती। अपने पिता को देश-देशांतर के समाचार सुनाने- वाले ब्राह्मणों के मुख से राजा नल की प्रशंसा सुनकर वह उसमें अनुरक्त हो गई । इधर लोगों से दमयंती का अप्रतिम सौंदर्य सुनकर राजा नल को भी उसकी प्राप्ति की अभिलाषा हुई। दमयंती में नल की आसक्ति इतनी बढ़ी और उसे दिन-पर-दिन इतनी व्याकुलता होने लगी कि राजकार्य में विघ्न पड़ने लगा। अतः 'आराम-विहार' के बहाने राजा नल कुछ काल के लिये बाहर चले गए । वहाँ उपवन में, एक तड़ाग के किनारे, एक सुवर्णमय हंस उन्होंने देखा । इस लोकोत्तर हंस को राजा ने