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पृष्ठ:नैषध-चरित-चर्चा.djvu/६६

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नैषध-चरित का पद्यात्मक अनुवाद

वाह साहब ! खूब ही नैषध की कथा का सार खींचा है। हमने स्वयं इस अनुवाद को नहीं देखा , परंतु यदि यह नैषध-चरित का अनुवाद है, तो इसमें वह कथा कदापि नहीं हो सकती, जिसका उल्लेख ऊपर दिए हुए विज्ञापन में किया गया है। यदि यह और किसी नैषध के अनुवाद का विज्ञापन है, तो हम नहीं कह सकते । शिवसिंहसरोज में अनुवाद के दो- एक नमूने भी दिए हुए हैं। उनको देखने से तो वह प्रसिद्ध नैषध- चरित ही का भाषांतर जान पड़ता है। फिर हम नहीं कह सकते कि अनुवाद में तेईस सर्ग कहाँ से कूद पड़े । मूल में तो केवल बाईस ही हैं । श्रीहर्ष ने नैषध-चरित में नल और दमयंती के विपत्तिग्रस्त होने की चर्चा भूलकर भी नहीं की। नहीं नानते, गुमानी कवि ने उस कथा को अपने अनुवाद में कहीं से लाकर प्रविष्ट कर दिया।

गमानी मिश्र-कृत नैषध-चरित के अनुवाद को प्रकाशित हुआ सुनकर हमें उसे देखने की उत्कंठा हुई । अतएव हमने शिवसिंहसरोज में उद्धृत किए हुए नैषध के दो श्लोकों का अनुवाद देखा । देखने पर हताश होकर गुमानीजी के ग्रंथ को मँगाने से हमें विरत होना पड़ा । नैषध-चरित के प्रथम सर्ग में एक श्लोक है, जिसमें राजा नल की लोकोत्तर दानशीलता का वर्णन है । वह श्लोक यह है—


  • इसे हमने अब पढ़ लिया है । यह नैषध-चरित ही का टूटा-फूटा

अनुवाद है।