शिवसिंहसरोज में हमने पढ़ा था कि सं०१८०५ में गुमानी मिश्र ने नैषध-चरित का अनुवाद, काव्यकलानिधि नाम से, किया है। हर्ष की बात है कि यह ग्रंथ बंबई में प्रकाशित भी हो गया है। इस अनुवाद का विज्ञापन प्रकाशित हुए सत्रह-अठारह वर्ष हुए। उसके अधिकांश की नक़ल हम नीचे देते हैं—
नैषधकाव्य
"नैषध (निषध ?) देश के राजा भीमसेन की कन्या पतिप्राणा पतिव्रता सती आदशिनी रानी दमयंती और द्दुतचतुर स्थिरप्रतिज्ञ राजा नल का पौराणिक आख्यान है । एक सती स्त्री विपत्ति पड़ने पर कैसे अपने पति की सेवा करती है। महा आपत् काल में विपद्ग्रस्त पति को छोड़कर स्त्री कैसे अलग न होकर अपना धर्म रखती और किस प्रकार अपना दिन काटती है। विपत्ति पड़ने पर एक धीर पुरुष कैसे धैर्य रखता है और अपना धर्म निबाहता है। फिर विपत्ति कटने पर सुख के दिन आते हैं, तो सज्जन पुरुष किस गंभीरता से अपना सर्वस्व सँभालते हैं, इत्यादि। इन बातों का वर्णन तेईस सर्ग में उत्तमोत्तम छंदोबद्ध काव्य में लिखा गया है।"