का विषय गौण हो गया है; उसका उपयोग कवि लोग इतने
ही के लिये करने लगे हैं, जिससे उसके बहाने उनको अपना
भाषा-चातुर्य प्रकट करने का मौक़ा मिले।"
नैषध-चरित में वेबर साहब के कहे हुए लक्षण प्रायः मिलते हैं।
डॉक्टर रोयर नाम के एक और भी संस्कृतज्ञ साहब की राय में नैषध-चरित बहुत क्लिष्ट और नीरस काव्य है। पडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर की भी सम्मति नैषध के विषय में अच्छी नहीं। संस्कृत-साहित्य पर उनकी एक पुस्तक बँगला में है। उसके कुछ अंश का अनुवाद नीचे दिया जाता है --
"श्रीहर्ष में कवित्व-शक्ति भी असाधारण थी, इसमें संदेह नहीं। किंतु उनमें विशेष सहृदयता न थी। उन्होंने नैषध-चरित को आद्योपांत अत्युक्तियों से इतना भर दिया है, और उनकी रचना इतनी माधुर्य वर्जित लालित्य-हीन, सारल्य-शून्य और अपरिपक्क है कि इस काव्य को किसी प्रकार उस्कृष्ट काव्य नहीं कह सकते। पूर्व-वर्णित रघुवंश, कुमारसंभव, किरातार्जुनीय और शिशुपालवध-नामक काव्य-चतुष्टय के साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती। श्रीहर्ष की अतिशयोक्तियाँ इतनी उत्कट हैं कि उनके कारण श्रीहर्ष के काव्य को उपा-देयत्व न प्राप्त होकर हेयत्व ही प्राप्त हुआ है।"
तथापि, जैसा हम ऊपर कह आए हैं, इस काव्य में अनेक
उत्तमोत्तम और मनोहर पद्य भी हैं। कहीं-कहीं मार्मिक सहृ-