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नैषध-चरित के कुछ श्लोकों को उद्धृत किए विना यह निबंध अपूर्ण रहेगा । अतएव हम कुछ चुने हुए श्लोक यहाँ देते हैं । प्रत्येक श्लोक का भावार्थ लिखने से विस्तार बढ़ेगा, तथापि संस्कृत से अनभिज्ञ लोगों को श्रीहर्ष का काव्यरस चखाने के लिये हमें भावार्थ भी लिखना ही पड़ेगा।
राजा नल के प्रताप और यश का वर्णन सुनिए—
तदोजसस्तद्यशसः स्थिताविमौ
वृथेति चित्ते कुरुते यदा यदा ;
तनोति भानोः परिवेषकैतवात्
तदा विधिः कुण्डलनां विधोरपि ।
(सर्ग १, श्लोक १४)
भावार्थ—उस राजा के प्रताप और यश के रहते, सूर्य और चंद्रमा का होना वृथा है । इस प्रकार जब-जब ब्रह्मदेव के मन में आता है, तब-तब वह, मंडल के बहाने, सूर्य और चंद्र दोनो के चारो ओर कुंडलना (घेरा) खींच देता है । अर्थात् सूर्य और चंद्रमा का काम तो राजा नल के प्रताप और यश ही से हो सकता है, फिर इनकी आवश्यकता ही क्या है ?