हृतसारमिवेन्दुमण्डलं दमयन्तीवदनाय वेधसा ;
कृतमध्यबिलं विलोक्यते धृतगम्भीरखनीखनीलिम ।
भावार्थ—जान पड़ता है, दमयंती के मुख की निर्मलता बढ़ाने के लिये ब्रह्मदेव ने चंद्रमंडल को निचोड़कर उसका सार खींच लिया है। इसी से बीच में छिद्र हो जाने से उसके अंतर्गत आकाश की नीलिमा दिखाई देती है।
ऊपर दिए हुए पद्य में श्रीहर्ष को बहुत दूर की सूझी है। यह श्लोक हंस ने, राजा नल से दमयंती के स्वरूप का वर्णन करते समय, कहा है।
दमयंती के वदन-वर्णन का नमूना हो गया। अब नल के मुख-वर्णन का नमूना लीजिए—
निलीयते हीविधुरः स्वजैत्रं
श्रुत्वा विधुस्तस्य मुखं मुखान्नः ।
सूरे, समुद्रस्य कदापि पूरे,
कदाचिभ्रभ्रमभ्रगर्भे ।
भावार्थ-दमयंती से नल की प्रशंसा करते हुए हंस कहता है—अपने मुख को जीतनेवाले नल के मुख का वर्णन हमारे मुख से सुनकर, अत्यंत लज्जित हुआ चंद्रमा, कभी तो सूर्यमंडल में प्रवेश कर जाता है, कभी समुद्र में कूद पड़ता है और कभी मेघमाला के पीछे छिप जाता है। खूब।