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अङ्क २]
[दृश्य १
न्याय

कर देना चाहिए कि वह जन्म और शिक्षा से दुर्बल चरित्र है। महोदय गण, इस अपराधी की तरह हज़ारों आदमी हमारे क़ानून की चक्की में रोज़ पिसकर मर रहे हैं। केवल इस लिये कि हममें वह इनसानियत की आँख नहीं है जिससे हम देखें कि वे अपराधी नहीं केवल मरीज़ हैं। यदि मुलज़िम का अपराध साबित हो गया और उसके साथ पाप में सने प्राणियों का सा व्यवहार किया गया तो वह सचमुच ही एक अपराधी बन जायगा, जैसा हम अपने अनुभव से कह सकते हैं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि ऐसी व्यवस्था न दीजिए जो उसे जेल में ले जाकर हमेशा के लिए दाग़ लगा दे। महोदयगण! न्याय एक यंत्र है जिसे यदि कोई चला दे तो फिर वह अपने ही आप चलता रहता है। क्या हम इस व्यक्ति को दरअसल उस मशीन के नीचे दबा कर चकना चूर कर देंगे? और वह इस लिये कि दुर्बलता के वशीभूत होकर उसने एक भूल की है। क्या आप उसे उन अभागे मल्लाहों का एक सदस्य बनाना चाहते हैं जो उन अँधेरे और भीषण जहाज़ों को चलाते हैं जिन्हें हम जेलख़ाना कहते हैं? क्या उसे वह यात्रा शुरू करनी होगी जहाँ से शायद ही कोई

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