पृष्ठ:न्याय.pdf/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अङ्क ४]
[दृश्य १
न्याय

रुथ

[उन्मत्त की भाँति खड़ी होकर]

नहीं नहीं, वह मर गए। मत छुओ।

[लोग हट जाते हैं]

कोकसन

[चुपके से बढ़कर बैठे हुए कंठ से]

हाय दुखिया! तुझ पर इतनी विपत्ति!

[अपने पीछे पैरों की आहट सुनकर रुथ कोकसन की ओर देखती है।]

कोकसन

अब उसे कोई नहीं छू सकता और न कभी छू सकेगा। वह अब ईश्वर के शान्तिभवन में सुरक्षित है।

[रुथ पत्थर की भाँति निश्चल होकर दरवाज़ा के पास खड़े हुए कोकसन की ओर देखती है। कोकसन झुककर व्यथित भाव से उसका हाथ पकड़ लेता है जैसे कोई किसी भूले भटके को पथ बताने के लिए पकड़ता हो।]

परदा गिरता है।

२७३