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मित्रसम्प्राप्ति] [१०९


ताम्रचूड़—"नहीं, मैं नहीं जानता।"

बृहत्स्फिक—"हो न हो इसका बिल भूमि में गड़े किसी ख़ज़ाने के ऊपर है; तभी, उसकी गर्मी से यह इतना उछलता है। कोई भी काम अकारण नहीं होता। कूटे हुए तिलों को यदि कोई बिना कूटे तिलों के भाव बेचने लगे तो भी उसका कारण होता है।

ताम्रचूड़ ने पूछा कि, "कूटे हुए तिलों का उदाहरण आप ने कैसे दिया?"

बृहत्स्फिक ने तब कूटे हुए तिलों की बिक्री की यह कहानी सुनाई—