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[पञ्चतन्त्र
 

बाद वह फिर मामूली चूहा ही रह गया है। इसकी छलाँग में अब वह वेग नहीं रहा, जो पहले था। धन में बड़ा चमत्कार है। धन से ही सब बली होते हैं, पण्डित होते हैं। धन के बिना मनुष्य की अवस्था दन्त-हीन सांप की तरह हो जाती है।"

धनाभाव से मेरी भी बड़ी दुर्गति हो गई। मेरे ही नौकर मुझे उलाहना देने लगे कि यह चूहा हमारा पेट पालने योग्य तो है नहीं; हाँ, हमें बिल्ली को खिलाने योग्य अवश्य है। यह कहकर उन्होंने मेरा साथ छोड़ दिया। मेरे साथी मेरे शत्रुओं के साथ मिल गये।

मैंने भी एक दिन सोचा कि मैं फिर मन्दिर में जाकर ख़ज़ाना पाने का यत्न करूँगा। इस यत्न में मेरी मृत्यु भी हो जाय तो भी चिन्ता नहीं।

यह सोचकर मैं फिर मन्दिर में गया। मैंने देखा कि ब्राह्मण ख़ज़ाने की पेटी को सिर के नीचे रखकर सो रहे हैं। मैं पेटी में छिद्र करके जब धन चुराने लगा तो वे जाग गये। लाठी लेकर वे मेरे पीछे दौड़े। एक लाठी मेरे सिर पर लगी। आयु शेष थी इस लिये मृत्यु नहीं हुई—किन्तु, घायल बहुत हो गया। सच तो यह है कि जो धन भाग्य में लिखा होता है वह तो मिल ही जाता है। संसार की कोई शक्ति उसे हस्तगत होने में बाधा नहीं डाल सकती। इसीलिये मुझे कोई शोक नहीं है। जो हमारे हिस्से का है, वह हमारा अवश्य होगा।

इतनी कथा कहने के बाद हिरण्यक ने कहा—"इसीलिये