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४.

कर्महीन नर पावत नाहिं

"अर्थस्योपार्जनं कृत्वा नैवाऽभाग्यः समश्नुते"
"करतलगतमपि नश्यति यस्य तु भवितव्यता नास्ति"

भाग्य में न हो तो हाथ में आये धन का भी उपभोग

नहीं होता।


एक नगर में सोमिलक नाम का जुलाहा रहता था। विविध प्रकार के रंगीन और सुन्दर वस्त्र बनाने के बाद भी उसे भोजन-वस्त्र मात्र से अधिक धन कभी प्राप्त नहीं होता था। अन्य जुलाहे मोटा-सादा कपड़ा बुनते हुए धनी हो गये थे। उन्हें देखकर एक दिन सोमिलक ने अपनी पत्नी से कहा—"प्रिये! देखो, मामूली कपड़ा बुनने वाले जुलाहों में भी कितना धन-वैभव संचित कर लिया है और मैं इतने सुन्दर, उत्कृष्ट वस्त्र बनाते हुए भी आज तक निर्धन ही हूँ। प्रतीत होता है यह स्थान मेरे लिये भाग्यशाली नहीं है; अतः विदेश जाकर धनोपार्जन करूँगा।"

सोमिलक-पत्नी ने कहा—"प्रियतम! विदेश में धनोपार्जन की कल्पना मिथ्या स्वप्न से अधिक नहीं। धन की प्राप्ति होनी हो तो

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